Shuddh Bhakat Charan Renu Lyrics
Shuddh Bhakat Charan Renu Lyrics in Hindi
शुद्ध-भकत-चरण-रेणु,
भजन अनुकूल।
भकत सेवा, परम-सिद्धि,
प्रेम-लतिकार मूल॥1॥
माधव-तिथि, भक्ति जननी,
यतने पालन करि।
कृष्ण वसति, वसति बलि,
परम आदरे बरि॥2॥
गौर आमार, ये सब स्थाने,
करल भ्रमण रंगे।
से-सब स्थान, हेरिब आमि,
प्रणयि-भकत-संगे॥3॥
मृदंग-वाद्य, शुनिते मन,
अवसर सदा याचे।
गौर-विहित, कीर्तन शुनि’,
आनन्दे हृदय नाचे॥4॥
युगल-मूर्ति, देखिया मोर,
परम-आनन्द हय।
प्रसाद-सेवा, करिते हय,
सकल प्रपन्च जय॥5॥
ये दिन गृहे, भजन देखि
गृहते गोलोक भाय,
चरण-सीधु, देखिया गंगा,
सुख ना सीमा पाय॥6॥
तुलसी देखि, जुड़ाय प्राण,
माधवतोषणी जानि’।
गौर-प्रिय, शाक-सेवने,
जीवन सार्थक मानि॥7॥
भकतिविनोद, कृष्ण भजने,
अनुकूल पाय याहा।
प्रति-दिवसे, परम सुखे,
स्वीकार करये ताहा॥8॥
Hindi Meaning
शुद्ध भक्तों की चरणरज ही भजन के अनुकूल है। भक्तों की सेवा ही परमसिद्धि है तथा प्रेमरूपी लता का मूल (जड़) है।
माधव तिथि (एकादशी) भक्ति देने वाली है इसलिए मैं यत्नपूर्वक इसका पालन करता हूँ। मैं श्रीकृष्ण के धाम को ही आदरपूर्वक अपना निवास-स्थान चुनता हूँ।
मेरे गौरसुन्दर ने जिन जिन स्थानों में आनन्दपूर्वक भ्रमण किया, मैं भी प्रेमी भक्तों के साथ उन-उन स्थानों का दर्शन करूँगा।
मृदङ्ग की मधुर ध्वनि को सुनने के लिए मेरा मन सर्वदा लालायित रहता है तथा श्रीगौरसुन्दर द्वारा प्रवर्तित कीर्तनों को सुनकर आनन्द से भरकर मेरा हृदय नाचने लगता है।
युगल मूर्ति का दर्शन कर मुझे परम आनन्द प्राप्त होता है। महाप्रसाद का सेवन करने से मैं माया को भी जीत लेता हूँ।
जिस दिन घर में भजन-कीर्तन होता है, उस दिन घर साक्षात् गोलोक हो जाता है। श्रीभगवान् का चरणामृत और श्रीगंगाजी का दर्शन करके तो सुख की सीमा ही नहीं रहती।
माधवप्रिया तुलसी जी का दर्शन कर त्रितापों से दग्ध हुआ हृदय सुशीतल हो जाता है। गौरसुन्दर के प्रिय साग का आस्वादन करने में ही मैं जीवन की सार्थकता मानता हूँ।
कृष्ण भजन के अनुकूल जीवननिर्वाह के लिए जो कुछ पाता है, यह भक्तिविनोद प्रतिदिन उसे सुखपूर्वक ग्रहण करते हैं।
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Shuddh Bhakat Charan Renu Lyrics in English
śuddha-bhakata- caraṇa-reṇu,
bhajana-anukūla
bhakata-sevā, parama-siddhi,
prema-latikāra mūla
mādhava-tithi, bhakti-jananī,
jatane pālana kori
kṛṣṇa-basati, basati boli`,
parama ādare bori
gaur āmāra, ye-saba sthāne,
koralo bhramaṇa raṅge
se-saba sthāna, heribo āmi,
praṇayi-bhakata-saṅge
mṛdaṅga-bādya, śunite mana,
abasara sadā jāce
gaura-bihita, kīrtana śuni`,
ānande hṛdoya nāce
jugala-mūrti, dekhiyā mora,
parama-ānanda hoya
prasāda-sebā, korite hoya,
sakala prapañca jaya
ye-dina gṛhe, bhajana dekhi,
gṛhete goloka bhāya
caraṇa-sīdhu, dekhiyā gaṅgā,
sukha nā sīmā pāya
tulasī dekhi, juḍāya prāna, mādhava-toṣanī jāni
gaura-priya, śāka-sevane,
jīvana sārthaka māni
bhakativinoda, kṛṣṇa-bhajane,
anukūla pāya jāhā
prati-dibase, parama-sukhe,
swīkāra koroye tāhā
English Meaning
The dust from the lotus feet of pure devotees gives rise to devotional service, and service to the devotees is itself the supreme perfection and the root of the tender creeper of divine love.
With great care I observe holy days like Ekādaśī and Janmāṣṭamī, for they are the mother of devotion. And with the greatest reverence and love I choose as my dwelling place the transcendental abode of Śrī Kṛṣṇa.
In the company of loving devotees I will visit all those places where my Lord Gaurasundara traveled and performed His pastimes.
My mind always begs to hear the music of the mṛdaṅga, and my heart dances in ecstasy whenever I hear the kind of kīrtana established by Lord Gauracandra.
I feel supreme bliss when I behold the Deity forms of the divine couple, Śrī Śrī Rādhā and Kṛṣṇa, and I conquer all worldly illusions by honoring the Lord’s prasādam.
Every day Goloka Vṛndāvana appears in my home when I see Lord Hari being worshiped there. My joy knows no bounds when I see the Ganges, a river of nectar emanating from the Lord’s lotus feet.
The sight of the tulasī plant soothes my soul, for I know she gives pleasure to Lord Kṛṣṇa. I feel that my life has been fulfilled when I honor śāk, a green leafy vegetable preparation that is a favorite of Lord Caitanya’s.
Whatever Bhaktivinoda obtains that furthers devotional service to Śrī Kṛṣṇa he accepts every day with the greatest joy.
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