Difference Between Lord Shri Krishna and Lord Vishnu
क्या आप जानते है भगवान श्री कृष्ण और भगवान विष्णु में क्या अंतर है
Difference between Lord Shri Krishna and Lord Vishnu
भगवान श्री कृष्ण के चार दिव्य गुण
कई बार मन में प्रश्न उठता है कि क्या भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु एक ही है या इनमे कोई अंतर है.?भगवान श्रीकृष्ण और भगवान श्रीविष्णु के मध्य अंतर को सरल भाषा में इस उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है.
1. कोई उच्च पद पर आसीन व्यक्ति यदि अपने कार्यालय में जाता है तो उसे सभी आदर-सत्कारपूर्ण व्यव्हार करते हैं.और जब वही व्यक्ति घर जाता है तो उसके निकटतम परिवारजन उसके साथ साधारण व्यक्ति जैसा व्यवहार करते हैं.
यहाँ तक की वह व्यक्ति अपने पुत्र या पौत्र को कंधे पर बैठाकर घुमाता है. घरेलु सम्बन्ध, कार्यालय के सम्बन्ध की तुलना में अंतरंग होता है.जैसे व्यक्ति एक ही है पर व्यावहारिक आदान-प्रदान अलग-अलग है.उसी प्रकार भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु एक ही हैं, परंतु वैकुण्ठ में तथा गोलोक वृंदावन में व्यावहारिक सम्बन्ध अलग-अलग हैं.
2. वह धाम जहाँ उनके स्वांश (विष्णु या नारायण) निवास करते हैं, वैकुण्ठ कहलाता हैं. जहाँ भगवान नारायण रूप में रहते हैं.तात्विक दृष्टि से गोलोक तथा वैकुंठ में कोई अंतर नहीं है,
किन्तु वैकुंठ में भगवान की सेवा भक्तों द्वारा असीम ऐश्वर्य द्वारा की जाती हैं, जबकि गोलोक में उनकी सेवा शुद्ध भक्तों द्वारा सहज स्नेह भाव में की जाती है.
भगवान श्री कृष्ण, विष्णु के रूप में उसी प्रकार विस्तार करते हैं जिस प्रकार एक जलता दीपक दूसरे को जलाता है.यधपि दोनों दीपक की शक्ति में कोई अंतर नहीं होता तथापि श्रीकृष्ण आदि दीपक के समान हैं (ब्रह्म संहिता ५.४६).
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भगवान श्री कृष्ण अवतारी हैं, जिनके सर्व प्रथम तीन पुरुष अवतार हैं :–
दूसरे अवतार हैं: “गर्भोदक्षायी विष्णु”– जो प्रत्येक ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट करके उसमे जीवन प्रदान करते हैं, तथा जिनके नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए.
तीसरे अवतार हैं: “क्षीरोदक्षायी विष्णु” – जो परमात्मा रूप में प्रत्येक जीव के हृदय में तथा सृष्टि के प्रत्येक अणु में उपस्थित होकर सृष्टि का पालन करते हैं (चै च मध्य लीला २०.२५१)
ब्रह्माजी कहते हैं: जिनके श्वास लेने से ही अनन्त ब्रह्मांड प्रवेश करते हैं तथा पुनः बाहर निकल आते हैं,
वे महाविष्णु कृष्ण के अंशरूप हैं. अतः मै गोविंद या कृष्ण की पूजा करता हूँ जो समस्त कारणों के कारण हैं. (ब्रह्म संहिता ५.४८)
भगवान कृष्ण अपने स्वांश नारायण या विष्णु से श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनमे ४ विशेष दिव्य गुण हैं: (चै च.मध्य लीला २३.८४)
१. “लीला माधुर्य” : उनकी अद्भुत लीलायें.
२. “भक्त माधुर्य” : माधुर्य-प्रेम के कार्यकलापों में सदा अपने प्रिय भक्तों से घिरा रहना (यथा गोपियाँ).
३. “रूप माधुर्य” : उनका अद्भुत सोन्दर्य.
४. “वेणु माधुर्य” : उनकी बाँसुरी की अद्भुत ध्वनि.
भगवान कृष्ण लक्ष्मीजी के मन को भी आकृष्ट करते हैं. लक्ष्मीजी ने रासलीला में सम्मलित होने के लिए कठिन तपस्या की, लेकिन शामिल नहीं हो पाई, क्योंकि गोपियों के भाव/शरीर में ही रास लीला में प्रवेश किया जा सकता था.
जब गोपियाँ रास लीला के समय कृष्ण को ढूँढ रही थीं, तो कृष्ण एक बगीचे में नारायण के चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गए. किन्तु वे गोपियों की प्रेमदृष्टि को आकृष्ट नहीं कर पाए, इससे कृष्ण की सर्वोत्कृष्टता सिद्ध होती है. (चै च.मध्य लीला ९.१४७-१४९)
श्रीकृष्ण का कमाल का चरित्र है
श्री कृष्ण का चरित्र हमे बार बार ये सिखाता है कि जीवन चरवेति-चरवेति का नाम है अर्थात चलते रहो, चलते रहो.जिसने जीवन को जड़ किया उसका जीवन दुर्गन्ध मारेगा ना सिर्फ चलने का नाम बल्कि लगातार परिवर्तन करना ही जीवन है.
श्री कृष्ण का जिस दिन से जन्म हुआ उसी दिन से चलना शुरू कर दिया जन्म लेते ही मथुरा से गोकुल आ गए, ५ वर्ष के थे तब गोकुल छोड़कर वृंदावन आ गए,११ वर्ष के हुए तो वृंदावन छोड़कर वापस मथुरा आ गए वहाँ से फिर द्वारिका आ गए.
इसी तरह मनुष्य है जीवन की हर अवस्था में अपनी जिम्मेदारियों को समझे,सबकी अपनी जीवन शैली होती है.भगवान के जीवन में भी परिवर्तन आया,कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था,ऐसा होगा?
कमाल का चरित्र, जो वृंदावन में गईया चराता है, मटकी ऐसे फोडता है कि पता ही नहीं चलता कि नफा कर गया कि नुकसान?गोवर ऐसे उठाता है, इसमें भी कला है, लकडियां ऐसे बीनता है जैसे चित्रकारी कर रहा हो, आज व्रजवासियो ने ऐसे कृष्ण को बदलते देखने कि कल्पना भी नहीं की थी.
ये वही कृष्ण है जो देवकी कि दौलत है, वासुदेव का विश्वास है, अर्जुन की आस्था है, भीष्म का भरोसा है, जो द्रोपदी का सर्वस्व है, शुकदेव की दिव्यता है, परीक्षित की धन्यता है, बलदेव के बंधू है,
राधा के रसिया है, गोपी मन बसिया है, यशोदा जी के यश है, और नंद के आनंद है.
बोलो भगवान श्री कृष्ण की जय
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