नारायणं नमस्कृत्य लिरिक्स Narayanam Namaskritya Lyrics


Narayanam Namaskritya Lyrics


Narayanam Namaskritya Lyrics in Hindi

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥SB 1.2.4॥

शृण्वतां स्वकथाः कृष्णः पुण्यश्रवणकीर्तनः।
हृद्यन्तः स्थो ह्यभद्राणि विधुनोति सुहृत्सताम्॥SB 1.2.17॥

नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया।
भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी॥SB 1.2.18॥

Hindi Meaning

विजय के साधनस्वरूप इस श्रीमद्भागवत का पाठ करने (सुनने) के पूर्व मनुष्य को चाहिए कि वह श्रीभगवान् नारायण को, नरोत्तम नर-नारायण ऋषि को, विद्या की देवी माता सरस्वती को तथा ग्रंथकार श्रील व्यासदेव को नमस्कार करे। [श्रीमद भागवतम 1.2.4]

Iskcon Bhajan Aarti
Iskcon Bhajan Aarti

प्रत्येक हृदय में परमात्मास्वरूप स्थित तथा सत्यनिष्ठ भक्तों के हितकारी भगवान् श्रीकृष्ण, उस भक्त के हृदय से भौतिक भोग की इच्छा को हटाते हैं जिसने उनकी कथाओं को सुनने में रुचि उत्पन्न कर ली है, क्योंकि ये कथाएँ ठीक से सुनने तथा कहने पर अत्यन्त पुण्यप्रद हैं। [श्रीमद भागवतम 1.2.17]

भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णत: विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है, जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है। [श्रीमद भागवतम 1.2.18]

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Narayanam Namaskritya Lyrics in English

nārāyaṇaṁ namaskṛtya
naraṁ caiva narottamam
devīṁ sarasvatīṁ vyāsaṁ
tato jayam udīrayet
[SB 1.2.4]

śṛṇvatāṁ sva-kathāḥ kṛṣṇaḥ
puṇya-śravaṇa-kīrtanaḥ
hṛdy antaḥ stho hy abhadrāṇi
vidhunoti suhṛt satām
[SB 1.2.17]

naṣṭa-prāyeṣv abhadreṣu
nityaṁ bhāgavata-sevayā
bhagavaty uttama-śloke
bhaktir bhavati naiṣṭhikī
[SB 1.2.18]
[Śrīmad-Bhāgavatam 1.2.18]

Hindi Katha Bhajan Youtube
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English Meaning

Before reciting this Śrīmad-Bhāgavatam, which is the very means of conquest, one should offer respectful obeisances unto the Personality of Godhead, Nārāyaṇa, unto Nara-nārāyaṇa Ṛṣi, the supermost human being, unto Mother Sarasvatī, the goddess of learning, and unto Śrīla Vyāsadeva, the author. [Śrīmad-Bhāgavatam 1.2.4]

Śrī Kṛṣṇa, the Personality of Godhead, who is the Paramātmā [Supersoul] in everyone`s heart and the benefactor of the truthful devotee, cleanses desire for material enjoyment from the heart of the devotee who has developed the urge to hear His messages, which are in themselves virtuous when properly heard and chanted. [Śrīmad-Bhāgavatam 1.2.17]

By regular attendance in classes on the Bhāgavatam and by rendering of service to the pure devotee, all that is troublesome to the heart is almost completely destroyed, and loving service unto the Personality of Godhead, who is praised with transcendental songs, is established as an irrevocable fact. [Śrīmad-Bhāgavatam 1.2.18]

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