Shri Ram Ji Ki Barat राम जी की बारात का अद्भुत दर्शन


Shri Ram Ji Ki Barat


राम जी की बारात का अद्भुत दर्शन

गोस्वामी तुलसीदास जी का अद्भुत भाव

Sant Tukaram Jayanti
Sant Tukaram

Shri Ram Ji Ki Barat

 

ऐसा क्या था राम जी की बारात में जिसकी वजह से गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा कि “बनइ न बरनत” बहुत ही अद्भुत थी राघव जी की बारात। आयिए देखते है कि ऐसी क्या विशिष्टता,विलक्षणता थी राम जी की बारात में।

करत बरात को,पयान नर नाह जब।
सुर नर मुनि जन,देखत बहार है।।

बीस कोटि हैं मतंग,औ तुरंग बीस कोटि।
पालकी पच्चीस कोटि,पैदल अपार है।।

भार वरदार सवा सात कोटि,ऊंट जात।
सेवक समूह पांच कोटि पुर धारे हैं।।

बराती कौन कौन है…?

श्रीराम जी की अजब बरात अवध से मिथिला चली
कर (हाथ) में मला,भाल (माथे) पे चंदन।
सब दाढ़ी वाले देखात,अवध से मिथिला चली।
श्रीराम जी की अजब बारात

हाथी,घोड़ा,रथ अव पालकी।
चढ़ि चढ़ि अवधी इतारत।।
अवध से मिथिला चली।
श्रीराम जी की अजब बारात

अयोध्यावासी अकड़ अकड़ के चल रहे हैं,अरे! भाई क्यों नहीं। ऐरे गैरे की बारात में लोग भाव खाते हुए चलते हैं।ये तो अयोध्या के महाराज राजादशरथ के जेष्ठ राजकुमार श्रीराम जी के विवाह के बराती!

लेकिन एक बात और सुनो…!

स्यंदन रुचिर सुमंत सारथी,नृप गुरु संग सुहात।
अवध से मिथिला चली।
श्रीराम जी की अजब बारात

राजा दशरथ जी बैठे हैं,सुमंत जी सारथी हैं। मिथिला वाले विनोद करते हैं कि एक रथ पे “दशरथ” बैठे है। तो एक सखी ने कहा कि इनका तो वंश ही ऐसा है। इनके वंश में एक “भगीरथ” हुए। बोली इसीलिए “भगी-रथ”अरे भाई जब एक रथ पे “दशरथ” बैठ जाएं।

ऐसी विलक्षण बरात अयोध्या से चली तो एक गांव में पहुंची। गांव वालों की भीड़ जुट गई,गांव वालों ने पूछा कि भैया बरात कहां से आ रही है…? आप लोगों ने देखा होगा पूछने वाले बड़ी विनम्रता से पूछते है। और बराती..? पूरी अकड़ में अयोध्या से आ रही  है। अच्छा अच्छा..! जा कहां रही है…?

मिथिला जा रही है,राजा जनक जी के यहां।अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ के जेष्ठ राजकुमार श्रीराम जी की बारात है। बारातियों ने मूछ पे हाथ फेरा। महाराजाओं की बारात है किसी चीज की कमी रहेगी क्या..! गांव वालों ने कहा एक बात पूछें…? बरात अयोध्या से आ रही है मिथिला जा रही है, सब कुछ बड़ा सुंदर है,लेकिन दूल्हा कहां है..?

सब की मूछ नीचे हो गई,सारी अकड़ चली गई,बोले कि वो…वो… हां हां बताओ न।
तो सामने वालों से कहा कि तुम्हीं बता दो न कि दूल्हा कहां है..! तो सामने वालों ने कहा कि जितना तुम्हें पता है उतना ही हमें भी पता है,तो तुम्हीं क्यों नहीं बता देते।

इसी पूछा पूछी में एक युक्ति सूझी..! तो बोले कि अरे बरात लंबी है न तो दूल्हा पीछे है अभी,सोचा किसी तरह पीछा छूटे इनसे बाकी पीछे वाले जाने। गांव वाले बरात की शोभा देखकर दूल्हा देखने के लिए तो और लालायित,लेकिन पूरी बरात निकाल गई पर दूल्हा दिखा ही नहीं।

गांव वालों ने जब पीछे वालों से पूछा तो…! पीछे वालों ने कहा कि आगे वालों ने क्या बोला था..? तो गांव वालों ने कहा कि बरात बड़ी है सो दूल्हा अभी पीछे है। पीछे वाले सब समझ गए,और बोले कि बरात इतनी बड़ी थी न कि दूल्हा बीच में ही निकल गया और आप देख नहीं पाए।

यह बरात सब भांति मनोहर,
किन्तु न दूल्हा साथ।
अवध से मिथिला चली।
श्रीराम जी की अजब बारात

एक गांव में तो इज्जत बच गई,लेकिन सोचा कि मिथिला तक तो न जाने कितने गांव मिलेंगे। यही सोचकर कुछ विशिष्ठ नागरिक राजा दशरथ जी के साथ गए,महराज बड़ी समस्या है। क्या…? यही कि सब पूछते हैं कि दूल्हा कहां है तो क्या बताएं…? दशरथ जी ने कहा कि तो हम्हिं क्या बताएं..! गुरु जी से पूछो।

सब गुरुजी के पास गए गुरुजी जी मुस्कुराए और बोले कि किसी अन्य राजकुमार को बता दो कि यही है दूल्हा। तो लोगों ने कहा गुरुजी जिसने रामजी को पहले से ही देखा हो तो..? अरे! तो ऐसे राजकुमार को बताओ न जो रामजी से मिलता हो।

भरतु राम ही की अनुहारी।
सहसा लखिन सकहिं नर नारी।।

वशिष्ठ जी ने कहा! भरत जी को बता दो।
अब बरात दूसरे गांव में पहुंची,तो लोग पूंछ नहीं रहे थे कि दूल्हा कहां है। लोग पूछते बरात कहां से आयी..? तो बराती कहते दूल्हा बताएं कहां है। मुंह से तो वहीं निकले,जो मन में भरा है।

बराती फिर पूरी अकड़ में अयोध्या से आ रही है। अच्छा अच्छा..! जा कहां रही है…? मिथिला जा रही है,राजा जनक जी के यहां।अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ के जेष्ठ राजकुमार श्रीराम जी की बारात है। अब बताएं दूल्हा कहां है..? भरत जी ओर इसारा करके वो रहा दूल्हा। बारातियों ने फिर मूछ पे हाथ फेरा। बरात देखो,दूल्हा देखो,अरे! कमी रहेगी क्या…? किसी चीज की राजाओं की बारात है। गांव वालों ने कहा अरे वाह! दूल्हा भी बड़ा सुंदर,बरात भी बड़ी सुन्दर। लेकिन एक बात पूछें..?

विवाह किस तिथि को होना तय हुआ है..? अब एक और नई समस्या। अब क्या बताएं..! सब की मूछ फिर नीचे हो गई,सारी अकड़ चली गई,बोले कि वो…वो… हां हां बताओ न। अब क्या बताते जब विवाह की तिथि तय हो,तब न बताएं। बरात चल पड़ी लेकिन अभी यही तय नहीं की विवाह होना किस तिथि को है। तो लोगों ने कहा कि हमने सोचा कि वहीं चल के विवाह की तिथि तय कर लेंगे।

इतने बराती किन्तु किसी को,
नहि विवाह तिथि ज्ञात।
अवध से मिथिला चली।
श्रीराम जी की अजब बारात

सब लोगों ने कहा कि जब विवाह तिथि ही नहीं ज्ञात तो चले ही क्यों अयोध्या से…?
तो मिथिला वालों ने विनोद किया और कहा कि हम बताते हैं कि अयोध्या से क्यों चले!
इन्होंने सोचा कि यहां से मिथिला चलते हैं,वहीं चल के विवाह की तिथि तय कर लेंगे,लेकिन क्यों…?

मिथिला में बहु व्यंजन मिलेंगे,
यहां मरि गै सत्तू खात।
अवध से मिथिला चली।
श्रीराम जी की अजब बारात

क्योंकि मिथिला में तरह तरह के व्यंजन खाने के लिए मिलेंगे,और यहां (अयोध्या में) सत्तू खाते खाते मर गए।

सखियन के सुनि व्यंग वचन वर,
राजेशहुं वलि जात।
अवध से मिथिला चली।
श्रीराम जी की अजब बारात

आनन्द अयोध्या में भी खूब और आनंद मिथिला में भी खूब,लेकिन रास्ते में जितने नगर,गांव और लोग मिले सब आनंदित हुए। हमे भी  अयोध्या रूपी इस सत्संग की देह से निकल कर,देह नगर नहीं,विदेह नगर पहुंचना है।लेकिन पहले देह भाव से ऊपर तो उठा जाए तभी तो विदेह नगर पहुंचेंगे।

परंतु विदेह नगर पहुंचे कैसे..? आगे आगे गुरुदेव जी,और उनके पीछे रामजी और लक्ष्मण जी। मतलब बिना गुरुदेव की कृपा के विदेह नगर पहुंचना संभव नहीं।

बरात मिथिला पहुंची तो बारातियों के स्वागत में सबसे पहले उनके स्वागतार्थ क्या आया…?

दधि चिउरा उपहार अपारा।
भरि भरि काँवरि चले कहारा॥

अयोध्या वासियों भाव सुनिए की सुना था जनक जी बहुत बड़े राजा हैं,लेकिन काहे के राजा…! ये दधि चिउरा राजाओं का भोजन है क्या..?

ये दधि चिउरा देखकर तो यही लगता है तुलसीदास जी ने बिल्कुल सही लिखा है कि…!

सुख विदेह करि बरनि न जाई।
मनहुँ दरिद्र जन्म निधि पाई।।

अयोध्या वासियों ने जब देखा कि जनक जी ने स्वागतार्थ दधि चिउरा भेजा है, देखा तो कहा कि क्या जनक जी क्या जन्म के दरिद्र ही है।
रास्ते में तो बड़ा विनोद करते थे कि “मिथिला में बहु व्यंजन मिलेंगे”

लेकिन कोई मिथिला वालों से पूछे.! तो कहते हैं कि अयोध्या वाले मर गए बिचारे सत्तू खाते खाते पहली बार दधि चिउरा मिला। और बड़ा स्वादिष्ट लगा,एक बार तो लिया, मन तो था कि और लें लेकिन कहे कैसे..? स्वागत करने वालों  पूछा और लेंगे..? तो अनमने मन से मना कर दिया, नहीं.नहीं। तो स्वागत करने वालों ने कहा कि चलो आप की इच्छा नहीं,हमारी इच्छा है और लेे लीजिए। अब तो संकोच टूट गया मांग मांग कर भैया दधि चिउरा, भैया दधि चिउरा।

मिथिला वासी कहते है कि बराती तो ऐसे दधि चिउरा खा रहे है कि जैसे..!

सुख विदेह करि बरनि न जाई।
मनहुँ दरिद्र जन्म निधि पाई।।

और अनेकों उपहार जनक जी बारातियों के स्वागतार्थ भिजवाए थे,लेकिन बराती दधि चिउरा खा रहे है।अयोध्यावासी मिथिला वालों के ऊपर व्यंग करें,और मिथिलावासी अयोध्या वालों पर व्यंग करें।

यश का गायन चाहे रामजी का हो,या जानकी जी का। हम  कहते हैं, कि श्रीराम जी के यश का गायन सुनकर जानकी जी प्रसन्न होती है,और जानकी जी के यश का गायन सुनकर श्रीराम जी प्रसन्न होते हैं। दोनों अलग अलग नहीं एक ही हैं।

गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न।।


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