Rati Ko Vardan
रति को वरदान
हिंदी अर्थ सहित
रति को वरदान
दोहा :
अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥87॥
भावार्थ:-हे रति! अब से तेरे स्वामी का नाम अनंग होगा। वह बिना ही शरीर के सबको व्यापेगा। अब तू अपने पति से मिलने की बात सुन॥87॥
चौपाई :
जब जदुबंस कृष्न अवतारा।
होइहि हरन महा महिभारा॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा।
बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥1॥
भावार्थ:-जब पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में श्री कृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा। मेरा यह वचन अन्यथा नहीं होगा॥1॥
रति गवनी सुनि संकर बानी।
कथा अपर अब कहउँ बखानी॥
देवन्ह समाचार सब पाए।
ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए॥2॥
भावार्थ:-शिवजी के वचन सुनकर रति चली गई। अब दूसरी कथा बखानकर (विस्तार से) कहता हूँ। ब्रह्मादि देवताओं ने ये सब समाचार सुने तो वे वैकुण्ठ को चले॥2॥
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता।
गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥
पृथक-पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा।
भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥3॥
भावार्थ:-फिर वहाँ से विष्णु और ब्रह्मा सहित सब देवता वहाँ गए, जहाँ कृपा के धाम शिवजी थे। उन सबने शिवजी की अलग-अलग स्तुति की, तब शशिभूषण शिवजी प्रसन्न हो गए॥3॥
बोले कृपासिंधु बृषकेतू।
कहहु अमर आए केहि हेतू॥
कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी।
तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी॥4॥
भावार्थ:-कृपा के समुद्र शिवजी बोले- हे देवताओं! कहिए, आप किसलिए आए हैं? ब्रह्माजी ने कहा- हे प्रभो! आप अन्तर्यामी हैं, तथापि हे स्वामी! भक्तिवश मैं आपसे विनती करता हूँ॥4॥
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