Manas Nirman Ki Tithi

Balkand Manas Nirman Ki Tithi

बालकाण्ड मानस निर्माण की तिथि

हिंदी अर्थ सहित


Balkand Manas Nirman Ki Tithi
Shri Ramcharitmanas BalKand

मानस निर्माण की तिथि

सादर सिवहि नाइ अब माथा।
बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
संबत सोरह सै एकतीसा।
करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥2॥

भावार्थ:-अब मैं आदरपूर्वक श्री शिवजी को सिर नवाकर श्री रामचन्द्रजी के गुणों की निर्मल कथा कहता हूँ। श्री हरि के चरणों पर सिर रखकर संवत्‌ 1631 में इस कथा का आरंभ करता हूँ॥2॥

नौमी भौम बार मधुमासा।
अवधपुरी यह चरित प्रकासा॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल जहाँ चलि आवहिं॥3॥

भावार्थ:-चैत्र मास की नवमी तिथि मंगलवार को श्री अयोध्याजी में यह चरित्र प्रकाशित हुआ। जिस दिन श्री रामजी का जन्म होता है, वेद कहते हैं कि उस दिन सारे तीर्थ वहाँ (श्री अयोध्याजी में) चले आते हैं॥3॥

असुर नाग खग नर मुनि देवा।
आइ करहिं रघुनायक सेवा॥
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना।
करहिं राम कल कीरति गाना॥4॥

भावार्थ:-असुर-नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्याजी में आकर श्री रघुनाथजी की सेवा करते हैं। बुद्धिमान लोग जन्म का महोत्सव मनाते हैं और श्री रामजी की सुंदर कीर्ति का गान करते हैं॥4॥

दोहा :
मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥34॥

भावार्थ:-सज्जनों के बहुत से समूह उस दिन श्री सरयूजी के पवित्र जल में स्नान करते हैं और हृदय में सुंदर श्याम शरीर श्री रघुनाथजी का ध्यान करके उनके नाम का जप करते हैं॥34॥

चौपाई :
दरस परस मज्जन अरु पाना।
हरइ पाप कह बेद पुराना॥
नदी पुनीत अमित महिमा अति।
कहि न सकइ सारदा बिमल मति॥1॥

भावार्थ:-वेद-पुराण कहते हैं कि श्री सरयूजी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों को हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी महिमा अनन्त है, जिसे विमल बुद्धि वाली सरस्वतीजी भी नहीं कह सकतीं॥1॥

राम धामदा पुरी सुहावनि।
लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
चारि खानि जग जीव अपारा।
अवध तजें तनु नहिं संसारा॥2॥

भावार्थ:-यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्री रामचन्द्रजी के परमधाम की देने वाली है, सब लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। जगत में (अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज) चार खानि (प्रकार) के अनन्त जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्याजी में शरीर छोड़ते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते (जन्म-मृत्यु के चक्कर से छूटकर भगवान के परमधाम में निवास करते हैं)॥2॥

सब बिधि पुरी मनोहर जानी।
सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा।
सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥3॥

भावार्थ:-इस अयोध्यापुरी को सब प्रकार से मनोहर, सब सिद्धियों की देने वाली और कल्याण की खान समझकर मैंने इस निर्मल कथा का आरंभ किया, जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ नष्ट हो जाते हैं॥3॥

रामचरितमानस एहि नामा।
सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि बिषय अनल बन जरई।
होई सुखी जौं एहिं सर परई॥4॥

भावार्थ:-इसका नाम रामचरित मानस है, जिसके कानों से सुनते ही शांति मिलती है। मन रूपी हाथी विषय रूपी दावानल में जल रहा है, वह यदि इस रामचरित मानस रूपी सरोवर में आ पड़े तो सुखी हो जाए॥4॥

रामचरितमानस मुनि भावन।
बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन।
कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥5॥

भावार्थ:-यह रामचरित मानस मुनियों का प्रिय है, इस सुहावने और पवित्र मानस की शिवजी ने रचना की। यह तीनों प्रकार के दोषों, दुःखों और दरिद्रता को तथा कलियुग की कुचालों और सब पापों का नाश करने वाला है॥5॥

रचि महेस निज मानस राखा।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर।
धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥6॥

भावार्थ:-श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वतीजी से कहा। इसी से शिवजी ने इसको अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुंदर ‘रामचरित मानस’ नाम रखा॥6॥

कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई।
सादर सुनहु सुजन मन लाई॥7॥

भावार्थ:-मैं उसी सुख देने वाली सुहावनी रामकथा को कहता हूँ, हे सज्जनों! आदरपूर्वक मन लगाकर इसे सुनिए॥7॥

Shrimad Bhagwat Geeta
Shrimad Bhagwat Geeta

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