Ganga Dushhara Katha
गंगा दशहरा कथा
गंगा दशहरा क्यों मनाया जाता है?
शिवजी की जटाओं में आज के ही दिन पहुंची थी गंगा, गंगा दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई, इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
गंगा दशहरा के शुभ अवसर पर गंगा जी में स्नान करने से सात्विकता और पुण्यलाभ प्राप्त होता है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का दिन संपूर्ण भारत में श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया जाता है। पवित्र नदी गंगा के पृथ्वी पर आने का पर्व है गंगा दशहरा। स्कन्दपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि ग्रंथों में गंगा जन्म की कथा वर्णित है।
भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में दर्शाया गया है। अनेक पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुये हैं। गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है।
लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा रखते हैं तथा मृत्यु पश्चात गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं। लोग गंगा घाटों पर पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं।
गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक माना गया है। गंगाजल को अमृत समान माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, दान एवं दर्शन करना महत्त्वपूर्ण समझा माना गया है। गंगा पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है। गंगा तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करता है गंगा जी के अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम एवं गंगा आरती बहुत लोकप्रिय हैं।
गंगा जन्म की कथा
गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है, और अनेक धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक है। इसमें एक कथा अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूँदों से हुआ गंगा के जन्म की कथाओं में अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी हैं। जिसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ।
एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया और एक अन्य कथा अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जिसे ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था।
गंगा आवरण का महत्व
शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन गंगा दशहरा (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है।
गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का क्षय होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। विधिविधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है।
पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की अस्थियों का उद्धार करने के लिए हुआ था तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार संभव हो सका इसी कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा।
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